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शुक्रगुजार

रात

रुझान कला की ओर

कितना अधिक रुझान था तेरा सच में ओ मां जाई कला संगीत नृत्य की ओर। सौ बात की एक बात है, तूं जीवन की सबसे सुंदर भोर।।

सदाबहार(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

वो मां कहलाती है

कशिश

किसी चौखट में नही थी कशिश इतनी,खींच लेती जो हमे अपनी ओर, इंसानो से ही घर घर होता है,प्रेम से ही सुंदर होती है हर रात और हर एक भोर।।

मावस में भी दीवाली

कौन सी भोर है thought by sneh premchand

कौन सी भोर और साँझ ऐसी है जब ज़िन्दगी का अहसासों से परिचय कराने वाली हर संज्ञा,सर्वनाम,विशेषण का बोध कराने वाली माँ याद न आती हो।।

Poem on feelings for parents by sneh premchand

किसी के होने का अहसास उतना नही होता जितना किसी के जाने का,और अगर ये किसी माँ बाप हों तो बात ही कुछ और हो जाती है।मां बाप जब ताउम्र हमारा आधार कार्ड और ए टी एम बन सकते हैं तब जीवन की सांझ में हम उनकी भोर क्यों नहीं बन सकते???             Snehbpremchand

उजली

उजली सी हो लाडो तेरे जीवन की हर भोर