सत्य की सावित्री, मन्त्रो में गायित्री, धर्मयुद्ध की गीता, रामायण की सीता, वात्सल्य की मूरत, सबसे प्यारी सी सूरत, ऐसी ही होती है माँ, है मां की, यही एक परिभाषा। पूरब,पश्चिम,उत्तर ,दक्षिण, मा बच्चों के जीवन मे एक आशा।। मां के बारे में क्या लिखूं, मां तो खुद एक किताब है। वो क्या,कब,कैसे,कितना करती है हमारे लिए, नहीं आज तलक बना इसका कोई हिसाब है।। फूलों में गुलाब, ममता की शराब, भोर का भास्कर, फिल्मों का आस्कर, सागर मंथन में निकला अमृत है मां, जो हमारे लिए जाने कितनी ही बार हंसते हंसते स्वेच्छा से पी जाती है गरल। सच में कोई हो ही नहीं सकता, मां सा महान और मां सा सरल।। कोई विज्ञान बना नहीं ऐसा, जो जान सके मां की फिजिक्स,कैमेस्ट्री और बॉयलॉजी। मां शक्ल देखते ही पहचान लेती है बच्चे की साइकोलॉजी।। कोई गणित नहीं बना अब तक, जो माप सके उस्के प्रेम की गहराई।। कोई शब्दावली नहीं बन सकी आज तक,कर पाए जो मां का बखान। एक अक्षर के छोटे से शब्द में, सिमटा हुआ है पूरा जहान। न कोई था, न कोई है, न कोई होगा,मां से बढ़ कर कभी महान।। कोई अतिशयोक्ति नहीं है इसमें, मां धरा पर है सच में देहधारी भगवान। हम ही नहीं ज...