पिता है सूरज के जैसा,है गर्म, मगर है जीवन मे उसी से उजाला। हो जाता है जब अस्त ये सूरज, छिन जाता है जैसेे मुख से निवाला।। वो माँ की तरह कभी नही करता इज़हार। पर भीतर से औलाद से उसको भी होता है प्यार। बेशक वो नारियल की तरह बना रहता है, पर उसने भी बड़ी मशक्कत से होता है उनको पाला।।