जीवन उस मटके जैसा है जिसमे सांसों रूपी पानी है,उस मटके मे एक छेद है,वो पानी पल पल रिस रहा है।लम्हा दर लम्हा कतरा कतरा बून्द गिरने से मटका एक दिन खाली हो जाता है।आत्मा रूपी दुल्हन चार कहारों की पालकी में सवार होकर अपने पिया परमपिता परमात्मा से मिल जाती है।इसी का नाम ज़िन्दगी है,जन्म से मृत्यु तक के बीच का समय।। इस ज़िन्दगी के सफर में समय संग किरदार बदलते रहते हैं।। स्नेहप्रेमचंद स्नेहप्रेमचंद