हर समस्या का हल तो नहीं हो सकती है हाला। ला देती है तमस जीवन में,हर लेती है उजाला।। जाने कहां कहां, कितनी तादाद में बनी हुई हैं मधुशाला?? कितने ही आशियाने उजड़ जाते हैं इसके नशे में, कितने ही भूखे पेटों को नहीं मिलता निवाला।। बेहिज, स्वार्थी बना देती है इंसा को, जैसे अपने ही रंग में हो रंग डाला।। Snehpremchand