आज भी याद आती है मुझे वह ,*किराए की साइकिल* किशन की दुकान से 1 घंटे के लिए बड़े चाव से लाना वह **किराए की साइकिल ** भरी दोपहर में पूरा एक घंटा बड़ी मशक्कत से चलाना वह **किराए की साइकिल ** भारी मन से वापस दे कर आना वह **किराए की साइकिल ** मां से जिद करना दे दो किराया मां लानी है मुझे वह **किराए की साइकिल ** हसरतें बाज़ औकात हैसियत पर भारी पड़ जाती हैं,जो खुशी किराए की साइकिल में मिल जाती थी आज बड़ी-बड़ी गाड़ियां होने पर भी वह खुशी मयस्सर नहीं होती, सब समय समय की बात है।।