महफ़िल Thought by sneh premchand September 28, 2020 हर महफ़िल हो जाती है सूनी, जहाँ ज़िक्र कभी उनका न हो। हर राह हो जाती है गुमराह, जहाँ से उनका जाना न हो।। हर परछाई पड़ जाती है छोटी, जब शीतल सा साया न उनका हो।। हर ख्याल हो जाता है बदगुमान जब तरुनम न ज़िन्दगी में उनकी हो।। स्नेह प्रेमचंद Read more