दूसरों का हक मार कर महल बनाया भी तो क्या,अपने हक की तो झोंपड़ी भी अच्छी है,कोई अपराधबोध कभी सालेगा तो नहीं।।दुर्योधन का अंत किसी से छिपा नहीं,दे देता पांच गांव तो महाभारत न हुआ होता।लालच के सदा दूरगामी परिणाम होते हैं,जो मात्र वक्त के चश्मे से नजर आते हैं।कृष्ण सा शांति दूत भी जिसे समझा न सका,उसके लालच की कोई सीमा नहीं।। स्नेह प्रेमचंद