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My amazing mother| कितना मुश्किल है दर्द छिपा कर ऊपर से मुस्काना poem by snehpremchand

कितना मुश्किल है दर्द छिपा कर ऊपर से मुस्काना, ये माँ बन कर माँ मैंने है जाना।। तूं कर्म की सड़क पर सतत पुल बनाती रही मेहनत का, अपने शौक,अपनी इच्छाएँ माँ तूने कभी न दिखाए, तूं कर्म की कावड़ में सदा जल भरती रही ममता और मेहनत का, कितने ही अतृप्त कंठ मां तूने तृप्त कराए।। आराध्या है माँ,वन्दनीय है माँ,ये माँ बन कर मां मैंने है जाना।। जाने कितनी ही अभिलाषाओं को तूने, कर्तव्यों की भेंट चढ़ाया होगा, जाने कितनी ही शिक्षाओं को तूने,संस्कार का आईना दिखाया होगा, जाने कितनी ही परम्पराओं को,रीति रिवाजों से मिलवाया होगा, जाने कितने ही तीज त्यौहारों का आलिंगन, उत्सवों और उल्लासों से करवाया होगा, जाने कितनी की सम्वेदनाओं में चेतनता का अंकुर प्रस्फुटित करवाया होगा, जाने कितने ही अरमानों को तूने ममता तले दबाया होगा, जाने कितने ही झगड़ों पर तूने शांति का शीतल जल बरसाया होगा, जाने कितने ही राज़ों को तूने समझौते का तिलक लगाया होगा, जाने कितनी ही चंचलताओं को माँ,तूने ज़िम्मेदारी बनाया होगा, जाने कितनी ही चाहतों को तूने अपेक्षाओं की बलि चढ़ाया होगा, हुआ जब ये सब संग मेरे,तब माँ मैंने है जाना। कितना मुश्किल है दर्द...