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नमन नमन हे नारी शक्ति(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

कविता 1_नमन नमन हे नारी शक्ति तुझे नमन नमन नमन हे नारीशक्ति, नमन नमन तुझे बारम्बार करुणा,विवेक,सौंदर्य की त्रिवेणी,  मानवता का अद्वितीय श्रृंगार।। सृजन की मूरत,ममता की सूरत, प्रेम ही जीवन का आधार तमस में आलोक हो, पुष्प में पराग हो, हो शिक्षा तुम, हो तुम्ही संस्कार उत्सव भी तुम हो, उल्लास भी तुम हो, हो तुम्ही नारी सारे रीति रिवाज तुमसे ही बजता है  सृष्टि के हर कोने में, जिजीविषा का सुंदर साज मरियम,सीता,अनुसूया तू  तूं ही राधा,मीरा ,पांचाली बहन,बेटी,पत्नी, मां हर किरदार में तूने उत्तम चलाई कुदाली घर को मंदिर बनाने वाली, खुद गीले में रह कर बच्चों को  सूखे में सुलाने वाली, हुआ नतमस्तक पूरा संसार नमन नमन हे नारीशक्ति, नमन नमन तुझे बारम्बार सर्वत्र पांव पसारे तूने, हर क्षेत्र को कर दिया आबाद सीमित उपलब्ध संसाधनों में भी तूने, कर्म का सदा बजाया शंखनाद सबको लेकर साथ चली तुम, निभाया सर्वोत्तम हर किरदार संयम,संतोष,कर्मठता की त्रिवेणी, मानवता का अद्भुत श्रृंगार।। बेटी कभी नही होती पराई, ये भी सार्थक करके दिखाया। ताउम्र मात पिता को तूने,  अपने चित में प्रेम से बिठाया।। तेरी प्रतिबद्धता, तेरे प्रया