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Showing posts with the label मां जुगुनू नहीं भास्कर है जीवन का

गुरु पूर्णिमा((विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

मां से बेहतर,मां से प्यारा, मुझे तो कोई भी गुरु नजर नहीं आता। मां दीया नहीं,आफताब है जीवन का, मां से अधिक,कोई भी तो नहीं भाता।। चेतन में भी मां है,अचेतन में भी मां है, मां कुदरत की सर्वोत्तम रचना। यही मन्नत मांगती हूं ईश्वर से, मां तूं ही हर जन्म में मेरी मां बनना।। जीवन का परिचय अनुभूतियों से कराने वाली मां से बेहतर कौन गुरू होगा, मेरे छोटे से दिमाग को ये बड़ा सा मसला समझ नहीं आता। जुगुनू नहीं भास्कर है मां जीवन का, मां से बेहतर कोई भी गुरु नजर नहीं आता।। हर संज्ञा,सर्वनाम,विशेषण का बोध कराने वाली मां मुझे तो ईश्वर के समकक्ष नजर आती है। हर क्यों,कैसे,कब,कितने का ततक्षण उत्तर बन जाती है।। शक्ल देख कर हरारत समझने वाली मां बेशक एक दिन इस जग से चली जाती है। पर जेहन में वो प्यारी सी मां, ताउम्र के लिए बस जाती है।। हमारे अचार,व्यवहार,कार्य शैली में मुझे तो वो रोज नजर आती है।। मां से प्यारा अक्स मुझे तो पूरी जिंदगी के   आइने में नजर नहीं आता। कहीं खोज लो,पूरे जग में मां बच्चे का सबसे सुंदर नाता।। मां तारा नहीं,दिनकर है जीवन का, मां का जिक्र भी जेहन में एक तरंग सी भर जाता...