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अनकही कहानियां मेरी मां की(( श्रद्धा सुमन स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

*कितनी अनदेखी अनकही कहानियां होंगी मेरी मां की* आज सोचा तो सीने में उठा तूफान मां के जीवन को देख आया समझ मां कुदरत का अद्भुत विलक्षण वरदान जाने कितने ही समझौतों के भाल पर मां शांति तिलक लगाती थी हम सब की परेशानियां होती थी उसकी परेशानियां, पर वो अपनी ही परेशानी हम से छिपाती थी आंशिक रूप से ही देख पाते थे हम, हमारी प्राथमिकताओं में मां नजर नहीं आती थी???? हम नजर से देखते थे तब नजरिए से देखना भला हमें कब आता था मां तो हनुमान है जो संजीवनी के लिए पूरे पहाड़ को बना लेती थी परिधान आज सोचा मां के बारे में तो सीने में उठा जैसे तूफान मां की जरूरतों,उसके अरमानों से कैसे बने रहे हम अनजान हर बच्चे का स्वभाव अलग  परिवेश और परवरिश भले ही एक सी थी,मां फिर भी सबसे ताल मेल बिठाती थी पापा के नाज नखरे भी मां कितनी सहजता से उठाती थी  भरी दोपहर में गली मोहल्ले की भी  रोटियां तपते तंदूर में बिन शिकन के लगाती थी कभी बर्तन कपड़ों का ढेर,कभी चूल्हे पर खाना,कभी भैसों का काम,वो काम पर विराम ही नहीं लगाती थी वो सिर पर रख कर जबर भरोटा  एस पी की कोठी से लाती थी फिर काट गंडासे में उसक...