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आज सोचा तो याद आया(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

आज सोचा तो मुझे बहुत कुछ याद आया कितना पावन कितना शीतल था मेरी मां का साया आज सोचा तो याद आया मुझे मेरा बचपन जहां मां पापा का होना ऐसा था जैसे दिल में धड़कन का होना,जैसे नयनों में ज्योति का होना आज सोचा तो मुझे याद आया हर प्रश्न का उत्तर मां कैसे पल भर में बन जाती थी चाहिए होती थी कोई चीज मुझे तो, पल भर में ही ले आती थी आज सोचा तो याद आया मेरी मां की कितनी ही अनदेखी अनकही कहानियां बन गई होंगी अनदेखा इतिहास मां कहती नहीं करती थी  यूं हीं नहीं लोग भी मां को कहते थे अति खास आज सोचा तो याद आया मां का ऐसा संकल्प लेना जिसे सिद्धि से मिलाने का लक्ष्य मेरी मां ने ठाना था हालात विषम रहे चाहे कितने ही, लेकिन उन्हें कभी ना बाधा माना था आज सोचा तो याद आया मां का जोश जज्बा और जुनून जिसे मां ने ताउम्र निभाया था कथनी नहीं करनी में विश्वास था मेरी मां का,मां का कितना शीतल साया था आज सोचा तो याद आया मां का गांव से शहर आना दो बेटों संग रोहतक में एक नई गृहस्थी बसाना तिनका तिनका जोड़ कर एक नया इतिहास रचा ना समय संग सात बच्चों को बेहतर नहीं बेहतरीन पढ़ाना लिखाना आज सोचा तो याद आया वो गुजरा ...