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एक सा परिवेश एक सी परवरिश(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

एक सा परिवेश एक सी परवरिश पर किस्मत चारों ने अलग अलग पाई मां की मेहनत और कर्मठता सच में एक दिन रंग लाई अपने सामर्थ्य से अधिक किया मां ने   आज सोचा तो बात समझ में आई कर्म बदल सकता है भाग्य मां आचरण में बात ये लाई कभी रुकी नहीं कभी थकी नहीं अभावों की नहीं दी कभी दुहाई मित्र सी रही मां तूं हमारी सच हम चारों रही तेरी परछाई हम सरगम तूं सुर रही मां हर मोड़ पर तेरी याद आई