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मां से पीहर

माँ पापा से ही होता है पीहर और मायका  वो नहीं रहते तो तो मिलता नहीं घर जाने में ज़ायक़ा ..  खो जाता है वो घर वाला सुकून और चैन  जहां बचपन के बीते अनेकों दिन रैन  माँ सा मिलता नहीं कोई कहीं  बस मन में रह जाती हैं सब यादें बसी  जब वो थे तो लगता था हमेशा ही रहेंगे  अब नहीं हैं तो ढूँढता है मन …  जबकि जानती हूँ कि अब वो कहीं नहीं मिलेंगे  समेटे उनकी यादों को अपने अंदर  चल रही हूँ जैसे लिए अपने भीतर एक समंदर  यूँ तो खामोशी सी छाई है मुख पर  पर दिल की गहराइयों में पल रहा है बवंडर

मां से पीहर

माँ पापा से ही होता है पीहर और मायका  वो नहीं रहते तो तो मिलता नहीं घर जाने में ज़ायक़ा ..  खो जाता है वो घर वाला सुकून और चैन  जहां बचपन के बीते अनेकों दिन रैन  माँ सा मिलता नहीं कोई कहीं  बस मन में रह जाती हैं सब यादें बसी  जब वो थे तो लगता था हमेशा ही रहेंगे  अब नहीं हैं तो ढूँढता है मन …  जबकि जानती हूँ कि अब वो कहीं नहीं मिलेंगे  समेटे उनकी यादों को अपने अंदर  चल रही हूँ जैसे लिए अपने भीतर एक समंदर  यूँ तो खामोशी सी छाई है मुख पर  पर दिल की गहराइयों में पल रहा है बवंडर

मां से ही

ज़िक्र ए जेहन thought by sneh premchand

ससुराल चाहे कितना भी अच्छा क्यों न हो, मायका कभी भी भुलाया नहीं जाता। शायद ही कोई भोर सांझ होगी ऐसी, जब जिक्र जेहन में उसका नहीं आता।।        स्नेह प्रेमचंद