कटुता ने एक दिन कहा मिठास से,कैसे इतनी मीठी हो तुम,और कैसे सदा रहती हो मुस्काती,क्यों क्रोध नही आता तुम को कभी भी,क्यों मन की बात ज़ुबान पर नही लाती,कैसे हर पल बोलती हो तुम यह सोची समझी मधुर सी भाषा,कैसे ले देती हो तुम उदासी में भी जीने की आशा?मन्द मन्द मिठास मन से मुस्काई,फिर सोच समझ कर शब्दों को अपनी जुबान पर लायी,बहन एक मीठा बोल कर हम परायों को भी अपना बना लेते हैं, और कर कटु विवेकहीन शब्दों का प्रयोग,अपनों को भी परायों में बदल देते हैं,थोड़ा बोलो,मीठा बोलो,वर्ना अपने लबों को ही न खोलो