कैसे जाऊं कान्हा के द्वारे, कर रहे सुदामा मन में विचार। फटेहाल मेरा पहनावा है, क्या करेंगे कान्हा मुझे स्वीकार। मिले जब दोनों, लगा कर गले से दूर कर दिए मलिन विकार।
विरहणी आत्मा जब मिल जाती है प्रीतम परमात्मा से,लोग उसे संज्ञा मौत की दे देते हैं, शौक का नही उत्सवबेला है ये,बाल गोबिंन भगत निजसुत के तन त्याजने पर पतोहू को यही ज्ञान देते है। स्नेहप्रेमचंद