बेसन की सौंधी रोटी पर, खट्टी चटनी जैसी माँ, घर के गीले चूल्हे में, सतत ईंधन से जलती माँ, सब कुछ करती, फिर भी सुनती, किस माटी से रच दिया विधाता, युग आएंगे,युग जाएंगे पर मां का ज़िक्र ही खुशियां लाता।। सौ बात की एक बात है, मां सा इस जग में होता ही नहीं कोई दूजा नाता।। मां ममता की होती है मूरत, मां की महिमा ये जग पूरा गाता।। ऐसी रचना रच दी ईश्वर ने, अब दूसरी कोई ऐसी रच ही नहीं पाता।। स्नेह प्रेमचंद