रेशम के कीड़ों की भांति अपने चारों ओर बनाया हुआ है हमने एक कोकून। खुद के इस कोकून को तोड़ मुक्त आत्मा के रूप में तितली जैसे बाहर आओ तुम,अकेले ही फिर सच्चाई के हो जाएंगे दर्शन,बस हो मन में ऐसा जुनून।। ये कहना था स्वामी विवेकानंद जी का,बात उनकी सबको भाती थी।। तुझे आता था इस कोकून से बाहर निकलना,यही कारण था जो अपने परायों सब से जुड़ जाती थी। देस की हो या फिर धरा हो परदेस की,सबको अपना बनाती थी।।