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वो पुराना घर(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

वो पुराना घर मेरे आज भी  सपनों में आ जाता है जहां जीवन का परिचय  हुआ था अनुभूतियों से, जाने क्या क्या मानस पटल  पर  छा जाता है वो लाल चंद कॉलोनी,वो सामने एल आई सी का ऑफिस आज भी जेहन में बसा जाता है वो मां का सिर पर जबर भरोटा लाना फिर पशुओं का चारा काट काट करना तैयार  वो कभी रुकती नहीं थी,थकती नहीं थी,मां सच में जीवन का सुंदर सार मानों चाहे या ना मानो मां हम सबके जीवन की रही शिल्पकार ना गिला ना शिकवा ना शिकायत कोई, मां बेहतर को बेहतरीन करने का बना ही लेती थी आधार आज भी याद आ जाता है वो पुराना घर मुझे, जहां मां बाबुल के साए तले बचपन महका करता था जहां कोई चित चिंता नहीं होती थी, मन झूम के चहका करता था जहां पत्ते,लल्लन,भादर,पारस कृष्णा,प्रेम,इंदर,ज्योत्सना, खातन ताई जी कितने ही होते थे किरदार मां का सबसे ताल मेल होता था गहरा, काबिल ए तारीफ रही मां की मधुर बोली और मधुर व्यवहार जहां ईंटों को भी बोरी से लाल लाल रगड़ा जाता था जहां भैंसों के गले में भी गलपट्टी का हार पहनाया जाता था जहां मां करती थी कर्म सदा, हमारे ख्वाबों को हकीकत में बदलती थी उपलब्ध सीमित सं...