** नहीं बनना** नहीं बनना मुझे राधा शाम की, जो रास तो संग मेरे रचाता हो। पर सिंदूर मांग में किसी और की, बड़े प्रेम से सजाता हो।।।।।।।।। नहीं बनना मुझे सिया राम की, जो सर्वज्ञ होकर भी अग्निपरीक्षा करवाता हो। गर्भावस्था में भी अपनी अर्धांगिनी को धोखे से वन में भिजवाता हो।।।।। नहीं बनना मुझे द्रौपदी पार्थ की, जो ब्याह तो संग मेरे रचाता हो। अपनी माता के कहने से निज भाइयों संग,इस नाते के हिस्से करवाता हो।।। नहीं बनना मुझे गौतम की कोई अहिल्या, जो मुझे श्रापग्रस्त करवाता हो। छल से मुझे तो छला इन्द्र ने, मुझे ही बरसों राम प्रतीक्षा करवाता हो।। नहीं बनना मुझे पांचाली धर्मराज की, जो जुए में मुझे ही दांव पर लगाता हो। भरी सभा में केश खींच लाने वाला दुशाशन, नारी अस्मिता को ही जैसे माटी में मिलाता हो।। नहीं बनना मुझे लक्ष्मण की उर्मिला, जो मुझे विरह अग्नि में जलाता हो। बिन मेरी इच्छा जाने वो भाई संग, वन गमन की कसमें खाता हो।। नहीं बनना मुझे यशोदा गौतम की, मां बेटे को सोया छोड़ जो भरी रात में सत्य की खोज में जाता हो। पल भर के लिए भी नहीं सोचा मां बेटे का,तोड़ा झट से,चाहे कितना ही गहरा नाता...