नामुमकिन भी हो जाए मुमकिन, चाहे गर जो अंजनि का लाल। फिर से ला दे संजीवनी बूटी, पूरे जग के बुरे हैं हाल।। एक अनजाना सा आया है वायरस, सब हुए जा रहे हैं बेहाल। मौत लील रही ज़िंदगियां, आकुल हिया हुआ व्याकुल विकल बदहाल।। चित चिंता हर लो बजरंगी, अपने भक्तों को लो संभाल। सी दो,आशा, जिजीविषा का चोला हो गया है जो फटे हाल।। नामुमकिन भी हो जाता है मुमकिन, चाहे गर जो अंजनि का लाल। कभी सोचा भी न था ज़िन्दगी में आएगा कभी ऐसा साल।। आशंका ने हर चित में कर लिया बसेरा, दूरी से और दूर हो गए हैं नाते, डर ने जैसे डाल लिया हो डेरा।। डर शंका सब दूर भगा दे, करदे न कुछ ऐसा कमाल। नामुमकिन भी हो जाए मुमकिन, चाहे गर जो अंजनि का लाल।। स्नेह प्रेमचंद