पूछन लागी जब रुक्मणि राधा से," कहो राधा! कैसा है तुम्हारा कृष्ण से नाता??? *राधा ने जो फरमाया* वह युगों युगों से युगों युगों तक, जन जन को तहे दिल से भाता।। बोली राधा,* मेरी तो सांस सांस में कान्हा,मेरी रूह को आज भी कान्हा की बंसी देती है सुनाई* पल पल होता है अहसास मुझे उनके होने का, नहीं हुई मेरी आज तलक भी उनसे विदाई।। *प्रेम कावड़ में कान्हा ने मुझे ऐसा अमृत पिलाया है* युगों युगों से,युगों युगों तक मेरा अंतर तृप्त हो आया है।। *बिन स्पर्श जो छू ले मन को, है *प्रेम* वही प्यारा सा अहसास* खुद को खुद की नजरों में भी बना देता है *आम से अति खास* *तन के भूगोल को नहीं मनोविज्ञान को जानता है प्रेम, ब्रेल लिपि नहीं, सांकेतिक भाषा का प्रेम में सार* बिन कहे ही समझ आता है जो, यही होता है प्रेमआधार।। मात्र कुछ मीठे शब्दों से ये, आंखों से ह्रदय में खुद को लेता है उतार। *धड़कन धड़कन संग लगती है बतियाने, हर शब्दावली अर्थहीनता की चला देती है बयार किसी देह किसी स्पर्श की प्रेम हो होती नहीं दरकार* जीवित रहती है ये प्रेम अनुभूति युगों युगों तक ह्रद...