अपने कौन,अपने वो जो अपनेपन का अहसास कराएं,जो उदास चेहरे पर मुस्कान लाएं,जो हर मुश्किल घड़ी में साथ हों,तिरस्कार के छपन भोग से तो प्रेम की सूखी रोटी भली,शबरी के झूठे बेर भी राम ने प्रेमवश ही खाये थे,सुदामा के पोहे,विदुर के घर भाजी गोविन्द के चेहरे पर अपार खुशियाँ लाये थे,अपनेपन का अहसास इस से अधिक क्या होगा,कोई किसी के खाने पीने का कभी भी भूखा नही होता,ये तो बस कशिश है प्रेम की,जो बेगानो में भी अपनेपन के बीज है बोता, अपने वो होते हैं जो हमारा ध्यानरखें,हमारा आत्म विश्वास जिनके सानिध्य से बढे, न कि हम भीतर से आहत हों,किसी ने सही कहा है अपने ही जब देते हैं जख्म,तब मरहम कहीं नही मिलता बागबान ही घर उजाड़े चमन को,एक भी पुष्प नही खिलता