माँ ममता की मूरत होती है, माँ होती है कुदरत का, एक नायाब उपहार। नही करते गर हम माँ की सेवा, होते हैं हम गुनाहगार।। माँ ममता के मंडप में, स्नेह का अनुष्ठान है। माँ घर के गीले चूल्हे में, सतत जलने वाला ईंधन है। माँ प्रेम का वो चिराग है जिसकी बाती अनुराग की, जिसका घी करुणा का, और जिसकी लौ बस आत्मीयता से जलती रहती है।। ऐसी होती है माँ , फिर हम ऐसे क्यों हो जाते हैं?? आजीवन करती है माँ बच्चों का, बच्चे चन्द दिनों में घबरा जाते है ।।।।।।