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तूं इस तरह से(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

 इस तरह से मेरी ज़िंदगी मे शामिल है, जैसे शक्कर में मिठास हो, जैसे राही को मन्ज़िल की तलाश हो, जैसे प्रकृति में हरियाली हो, जैसे तरूवर पर कोयल काली हो, जैसे दिल मे धड़कन होती हो, जैसे नयनों में ज्योति हो, जैसे माला में मोती हों, जैसे कुसुम में मीठी महक हो, जैसे चिड़िया की प्यारी चहक हो, जैसे माथे पर हो बिंदिया जैसे थकान के बाद हो निंदिया, जैसे कूलर में हो पानी, जैसे राजा के लिए रानी, जैसे माँ के लिए नानी, जैसे शवास के लिए है समीर, जैसे सागर में होता है नीर, जैसे रघुवर थे धीर गंभीर, जैसे पतंग के लिए होती है डोर, जैसे रजनी के बाद होती है भोर, जैसे दिनकर में होता है ताप, जैसे इंदु में शीतलता का राग, जैसे संगीत में हों सुर सात जैसे ज़िन्दगी के लिए है वात, जैसे माँ में ममता होती है, जैसे पिता में क्षमता होती है, जैसे गंगा की हो निर्मल धारा, जैसे शब्दों ने भाव को हो पुकारा।। जैसे सुर में सरगम जैसे दिल में धड़कन जैसे साहित्य में कविता जैसे बहाव में सरिता जैसे पतंग में डोर जैसे पहर में भोर जैसे पर्वों में दीवाली जैसे गीता में ज्ञान जैसे राधा का श्याम जैसे नाव में पतवार जैसे नाटक में...