*उठो पार्थ गांडीव उठाओ* अधर्म पर धर्म को विजय दिलाओ। अति महीन हैं ये मोह मोह के धागे, इन पर विवेक की कैंची चलाओ।। मोह ग्रस्त इस चित की चेतना को, ज्ञान सरिता में डुबकी लगवाओ।। जब जब होती है हानि धर्म की, तब तब जन्म मैं लेता हूं। धर्म की स्थापना के लिए, साधुओं की रक्षा के लिए, नए अवतार में पापी को दंडित कर देता हूं।। तुम भी मत हिचको मेरे प्रिय शिष्य! चलो ,सत्यपथ पर मत डगमगाओ। अन्याय का फन कुचलो, और न्याय को विजय दिलाओ।। *उठो पार्थ !!गांडीव उठाओ* ये मोह मोह के हो धागे हैं, इनकी उलझन से बाहर आओ।। याद करो अभिमन्यु वध को, याद करो उस चकव्यूह को, जहां अकेले निहत्थे को मिल कर सबने ने मारा था। अंतिम श्वास तक लड़ता रहा वो, पर हिम्मत नहीं हारा था।। फिर तुम क्यों लड़ने से पहले ही विचलित से हुए जाते हो??? सब झूठे हैं ये नाते रिश्ते, क्यों समझ नहीं पाते हो????? सत्य के लिए लडो पार्थ, क्यों मोहग्रस्त हुए जाते हो??? *उठो पार्थ गांडीव उठाओ* अधर्म पर धर्म को विजय दिलाओ।। याद करो वो धूतक्रीडा का छल याद करो वो पांचाली का रूदन याद करो वो दुर्योधन का कथन सोया है जो ज़मीर तुम्हारा, उसे चेतना में ले आओ।। *उठो ...