सखी सखी री तुम यादबहुत आती हो आ-आकर यादों में, हमे बड़ा सताती हो, सखी री तुम याद बहुत आती हो। ये कैसा रिश्ता है तुमसे जिसका कोई एक नाम नहीं कभी हो तुम मां जैसी, कभी हुई सहकर्मी सी, कभी सखी तुम बन गयी और कभी घर जैसी ही सही। दफ्तर खाली सा लगता है, गलियां सूनी सी हो गयी, तेरे चले जाने से सखी, बाजार की रौनक भी खो गयी। कितनी भी तुम दूर रहो, तुम्हें न भुला अब पायेंगे, खुशी और गम के हर पल मे याद तुम्हें कर जायेंगे। सखी तुम्हारे आंचल से मन की गहराई जुड गयी, अब तो तुम इस दिल में हो,भले ही राहें मुड़ गयी। हर पल अब तो लगता है, तुम होले से छू जाती हो, सखी री तुम याद बहुत आती हो आ-आकर यादों मे हमको बड़ा सताती हो सखी री तुम याद बहुत आती हो।