दूर उफ़क पर जब दिनकर सिंधु से मिलते नज़र आए। सिंधु जल पर प्रतिबिम्बित हुई स्वर्णिम आभा,अक्स भी पीत पीत से सब नज़र आए।। ऐसी सुंदर भोर की बेला में मुखे आप सरीखे याद आए।। स्नेहप्रेमचंद
पूरब से हौले हौले जब भानु आए, तमस हटा,आलोक खिला, प्रकृति के साये खुल कर मुस्काए। अरुणिम उषा के गालों पर बिखरी लालिमा, चेतना भी संग स्पंदन के दौड़ी आए। ऐसी भोर की बेला में मुझे आप सरीखे याद आए।। स्नेहप्रेमचंद