फिर आई गरमी की छुट्टियां, फिर तेरी याद ने ली अंगड़ाई। फिर वो देहरी चौखट याद आए, फिर तेरे आंचल की महक याद आई। फिर तेरी रसोई की सौंधी सौंधी सी महक ने अंतर्मन में एक अजब हलचल है मचाई। फिर याद आया तेरा कमरा बिस्तर, तेरा हौले से हाथ पकड़ भीतर लेे जाना, खोल कपाट अलमारी के परिधान दिखाना, फिर हिया में यादों ने मीठी सी हूक मचाई। फिर याद आया तेरा अंदाज़ ए गुफ्तगू वो लहजे में लरज़ फिर याद आई। फिर याद आया वो सहज भाव तेरा, वो तेरी कर्मठता,जिजीविषा याद आई। फिर याद आई वो निश्छल मुस्कान, फिर याद आया मेरा,वो बनना तेरी परछाई। फिर याद आया वो साग तेरे हाथ का, वो लपट कढ़ी की,वो उध डे रिश्तों की करना तुरपाई।। फिर याद आया तेरा नहा धो कर ढ़ योड़ी पर चौकड़ी जमाना, गजब थी मां तेरी रोशनाई।। फिर याद आया तेरा गूंद बनाना, बाजारों के चक्कर लगाना, नई नई सी चद्दर बिछाना, पूरे घर को चमका ना, वो दीवाली की बेहतरीन सफाई।। फिर याद आया तेरा वो गोले बनाना, वो घंटों चलाते रहना सिलाई। क्या भूलूं,क्या याद करूं मैं, हृदय सिंधु से उठी, लहर यादों की, कभी वर्तमान कभी माजी के साहिल से टकरा...