नित शब्दों से खेलने वाली निशब्द सी हो गई हूं मैं, सच तेरे जाने के बाद। तूं रही सदा केंद्र बिंदु जीवन का, आती है मां जाई घणी-घणी सी याद।। जब भी वर्तमान अतीत की चौखट पर दस्तक देता है। सबसे पहले ओ मां जाई! नाम तेरा वह लेता है।। चलचित्र सा चल पड़ता है यादों का कारवां, मौन से, होने लगता है अजब सा संवाद।। नित शब्दों से खेलने वाली निशब्द से हो गई हूं मैं, सच तेरे जाने के बाद।। * हर उद्बोधन और संबोधन बड़ा मधुर था तेरा* मीठी वाणी, मधुर व्यवहार और उत्तम सोच की त्रिवेणी का सदा बजाया तूने शंखनाद। कभी रुकी नहीं, कभी थकी नहीं, सफर को मंजिल से अधिक खास बनाने वाली! आती है तू घणी घणी याद।। फर्श से अर्श तक का सफर तय करने वाली! मेहनत और जिजीविषा तूने जननी से विरासत रूप में पाई थी। आजमाइश भी आजमाती रही सदा तुझे कदम-कदम, पर पर तू हिम्मत की महारानी! कभी नहीं घबराई थी।। *खुद मझधार में हो कर भी साहिल का पता बताने वाली* अपने ही नहीं, पराए भी तुझे करते हैं याद। किन-किन यादों को समेटू जिंदगी के पन्नो की आगोश में, आते हैं याद...