युग बदले पर सोच ना बदली, करे द्रौपदी चीख पुकार मानव रूप में देखो दानव कर रहे बेधड़क व्याभिचार कहीं सुरक्षित नहीं है नारी, भेड़िए घात लगा, कर रहे प्रहार मानव जब बन जाता है दानव करता मानवता को शर्मसार युग बदले पर सोच ना बदली करे द्रौपदी चीख पुकार....... जब लज्जा का एक दुपट्टा सिर से ऐसे खींचा जाए जब नारी की अस्मत को यूं मिट्टी में रौंदा जाए क्यों नहीं धरा गगन डोले क्यों मौन रहा सारा संसार??? युग बदले पर सोच ना बदली, करे द्रौपदी चीख पुकार कभी दिल्ली कभी मणिपुर दहला अब कलकता भी हुआ शुमार तन घायल और मन आहत करे कायनात जैसे हाहाकार अपराध की सजा हो इतनी भयंकर सोचे अपराधी जो बार बार जब कोई द्रौपदी करे पुकार तो फिर कोई कान्हा क्यों ना आए तन मन दोनों होते हों जब घायल क्यों कोई मरहम नहीं लगाए रक्षक ही जब बन जाएं भक्षक न्याय का हिल जाता आधार युग बदले पर सोच ना बदली करे द्रौपदी चीख पुकार जब कोई घटना ऐसी हो तो ह्रदय क्रोध से भर जाए जब एक नारी की ऐसी हालत जीते जी वो मर जाए जब भरी भीड़ में इज्ज़त को सिक्के की तरह उछाला जाए जब निर्वस्त्र क...