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सावन भादों(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

यूं हीं तो नहीं ये सावन भादों इतने गीले गीले से होते हैं जाने कितने ही अनकहे अहसास खुल खुल कर दिल से रोते हैं *आहत भाव* बन कर जज़्बात जैसे मन के मैल को धोते हैं कह नहीं पाते हम हर बात फिर होती है नयनों से बरसात नयन होते हैं आईना दिल का आते हैं नजर जिनमे जज़्बात अच्छा सा लगता है मुझे घनी बारिश में नहाना  किसी को पता नहीं चलता संग संग नयनों से भी हो रही है बारिश, रो रही है तन्हाई और सुबक रहा होता है वीराना

सावन भादों