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अच्छे नहीं लगते(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

अच्छे नहीं लगते मुझे  ये एक्वेरियम और बोंझाई ऐसे लगता है जैसे इनके विहंगम विस्तार की,  हमने हो सीमा घटाई जलजीव खुश और सहज रहते हैं अनंत,असीम,विस्तृत सागर में, क्यों उन्हें अपने ही तरीके से रखना चाहते हैं हम उन्हे इस संसार में??? क्यों अपनी खुशी की खातिर हम उन्हें रख एक्वेरियम में मानों दे देते हैं एक कैदखाना  मुझे तो इसे शो पीस बनाने का समझ ही नहीं आता फसाना प्रकृति में जिसको जैसे जहां के लिए ईश्वर ने बनाया है कर छेड़खानी विधाता की संरचना से   हमने अपने ही दुखों को बढ़ाया है अच्छे नहीं लगते मुझे ये बोंझाईं जहां बड़े बड़े वृक्षों को छोटे रूप में कर देते हैं तबदील लोग कहते हैं सुंदर लगते हैं मुझे तो समझ आती नहीं उनकी दलील एक वृक्ष जिसका हो सकता था अनंत विस्तार उसे छोटे में बदल कर क्या हम कह सकते हैं करते हैं हम उनसे प्यार