राधा,मीरा और रुक्मणि एक दिन स्वर्ग में मिल जाती हैं, तीनों कान्हा की प्रेम दीवानी,कुछ ऐसे बतियाती हैं।। कहा रुक्मणि ने दोनों से,"कैसी हो मेरी प्यारी बहनों,कैसी बीत रही है ज़िंदगानी?? हम तीनों के प्रीतम तो कान्हा ही हैं, पर सुनाओ आज मुझे अपनी अपनी प्रेम कहानी। सबसे पहले बोली मीरा,"मैं तो सांवरे के रंग रांची, भाया न मुझे उन बिन कोई दूजा, बचपन से ही उन्हें माना पति मैंने, निस दिन मन से करी उनकी पूजा।। उन्हें छोड़ किसी और की कल्पना नहीं हुई मुझे कभी स्वीकार। ज़हर का प्याला पी गई मैं तो, किए सपनों में भी कान्हा दीदार।। नहीं राणा को मैंने माना कभी भी अपना सच्चा भरतार। करती थी,करती हूं,करती रहूंगी सदा शाम से सच्चा प्यार।। मीरा के समर्पण को सुन रुक्मणि को ईर्ष्या हो आई, उन्मुख हो राधा से पूछा उसने,"कहो तुमने कैसे ज़िन्दगी बिताई???? राधा बोली,क्या हैं कान्हा मेरे लिए,लो आज तुम्हे बताती हूँ, भावों और शब्दों के आईने से सच्ची तस्वीर दिखाती हूँ।। इबादत हैं कान्हा,तो मस्ज़िद हूँ मैं, सरोवर हैं कान्हा,तो शीतल जल हूँ मैं, परिंदा है कान्हा तो पंख हूँ मैं, परीक्षा है कान्हा तो अंक हूँ मैं, म...