*सुन राधा की प्रेम भरी बातें रुकमणी के फूटे कुछ ऐसे उदगार* आज खुल गई आंखें मेरी, हो गए सारे भ्रम मेरे आज तार तार।। राधा मीरा! तुम दोनो का कद तो आज कुछ ज्यादा ही बढ़ आया है। धुंधला धुंधला था जो मंजर जैसे साफ हो आया है।। " प्रेम भाव*मुझे युगों युगों के बाद तुम दोनो ने समझाया है।। मैने भी तुम दोनों की भांति उनको सदा मन से चाहा है। समझा सदा खुद को अधिक *धनी किस्मत की* पति रूप में जो उन्हें पाया है ।। ना मीरा ने, ना राधा ने, *सिंदूर* तो रुकमणी की ही मांग में श्याम ने सजाया है।। बेशक मंदिर में मेरा किया हरण पर *अर्धांगिनी* रूप में मुझे अपनाया है। मेरा तन मन भीगा *कान्हा प्रेम*से, मैने ऐसा *रंगरेज* अनोखा पाया है।। दुनिया के हर सुख को बहनों उन्होंने मुझ पर लुटाया है।। मैं हो गई *पूर्ण पूर्ण* सी, मोहे सांवरे ने अंग लगाया है।। *पर तुम दोनों जो दमदम दमकती हो*बहनों, उस रूप ने मेरे नयनों को चुंधियाया है। राधा कान्हा का प्रेम तो प्रेम का *सबसे ऊंचा शिखर* है, जहां कोई और पहुंच नहीं पाया है।। मीरा का ...