महाभारत से इस मन को माँ निज कृपा से रामायण बना दे। ख़ौफ़ज़दा है ये मन मेरा,इसे निर्भयता की लोरी सुना दे।। सुना था समस्या है तो समाधान भी है, माँ इस समाधान का आफ़ताब खिला दे।। तेरा साया हो जो सिर पर तूँ फर्श से अर्श तक पहुँचा दे।। इस घने अंधेरे में घबराए इंसान को सहजता के अमृत पिला दे। फिर ला दे वे दिन पहले से, जिजीविषा का कमल खिला दे।। स्नेह प्रेमचंद स्नेहप्रेमचंद