मैं कतरा कतरा रिसती रही, तुम घूंट घूंट मुझे पीते रहे, मैंं लम्हा लम्हा मरती रही, तुम चैन से जिंदगी जीते रहे, मैं धुआं धुआं सी घुलती रही, तुम अंतर्ममन से रीते रहे, अवरुद्धध कंठ से कुछ कह ना सकी, तुम जी चाहा सब कहते रहे, हर मंजर मेरा धुंधलाया रहा, तेरा कभी ना ठंडा साया रहा, मैंं हौले हौले दरकती रही, पस- ए-पर्दा मैं साकी सिसकती रही।। Snehpremchand