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राम तुम्हें फिर आना होगा(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

 *राम तुम्हें फिर आना होगा* *राम तुम्हें फिर आना होगा* महाभारत से इस चित को, रामायण तुम्हें बनाना होगा बंजर से मन के रेगिस्तान को, फिर से हरा बनाना होगा भौतिकता को जो बना रहे  प्राथमिक,  अध्यात्म का मार्ग दिखाना होगा शिक्षा भाल पर संस्कारों का टीका अवश्य लगाना होगा संयम,त्याग,सत्य,मर्यादा  हैं  असली संजीवनी बूटी, हर मूर्छित लक्ष्मण को होश में लाना होगा  *राम तुम्हें फिर आना होगा* *राम तुम्हें फिर आना होगा फिर कोई मंथरा ना बरगलाए किसी कैकई को ऐसा भाव जगाना होगा कोई ना छोड़े दामन विवेक का दिलो दिमाग में सामंजस्य बिठाना होगा *राम तुम्हें फिर आना होगा* *राम तुम्हे फिर आना होगा* हैं भयभीत और आशंकित जो, उन्हें निर्भय बनाना होगा सब निर्भय हों,सब स्वस्थ हों एक ऐसा अभियान चलाना होगा हर चित में गुत्थी जो विकारों की, अब तो उसे सुलझाना होगा अब तो उसे सुलझाना होगा *राम तुम्हें अब आना होगा* भाई भाई से करे प्रेम सदा हर बाली को समझाना होगा छल बल से नहीं चलती दुनिया सत्य का दीप जलाना होगा सत्य का दीप जलाना होगा *राम तुम्हें फिर आना होगा* जाने कितनी ही अहिल्याओं का बाकी उद्धार है