**बूंद बूंद बनता है सागर लम्हा लम्हा बनती है जिंदगानी जिंदगी और कुछ भी नहीं है,सच तेरी मेरी कहानी*" इस कहानी में नौकरी का महत्व बहुत है, जिम्मेदारी सारी पड़ती हैं निभानी।। *ज्वाइनिंग से रिटायरमेंट तक के सफर में इंसा अनेक अनुभव जिंदगी भाल पर लगाता है। *धूप छांव* सी इस जिंदगी में कर्तव्य कर्म करता जाता है।। हौले हौले शनै शनै दिन ये एक दिन आ ही जाता है। कार्यक्षेत्र से हो सेवा निवृत व्यक्ति घर को आता है।। माना जिंदगी का *स्वर्ण काल* वो अपनी नौकरी में ही बिताता है। पर शेष जीवन भी है *हीरक काल* ये क्यों भूले जाता है।। शेष को अब बनाना है विशेष, फिर जीवन सार्थक हो जाता है।। कोई शौक रह गया हो अधूरा जिंदगी की आपाधापी में तो, उसे पूरा करने का वक्त अब आता है।। अति सरल सहज और स्नेही रहा योगेश जी आप का सदा व्यवहार। कर्म ही असली परिचय पत्र होते हैं व्यक्ति का,वरना एक ही नाम के व्यक्ति तो होते हैं हजार।। खास नहीं अति खास रहा आपका और सहयोगी व्यवहार।। आप स्वस्थ रहें,खुश रहें आज के शुभ दिन हमारी यही दुआएं कर लेना स्वीकार।।