लालसाओं के इंद्र ने छल लिया विवेक के कर्ण को, और छीन करुणा के कवच कुंडल, कर दिया चित्त को लहुलुहान। मानव मानव न रह कर बन गया दानव, भोग विलास का रूह ने पहन लिया परिधान।। सब छोड़ कर जाना है एक दिन, इस सत्य से न ही रहें अनजान।। अहम के कौरवों ने विनाश का जुआ बेशक जीत लिया हो पांडवों से, पर सारथि बने ईश्वर की मदद से महाभारत युद्ध मे मिली विजय महान।। छल के मारीच ने बेशक भृमित कर दिया हो सत्य की सिया को, पर उसके सतीत्व को हर न पाया रावण कद वान।। छल के बाली ने बेशक छीन लिया राजपाठ और भ्रात भार्या को, पर अधर्म पर विजय हुई धर्म की,रघुनन्दन ने सुनाया मौत फरमान।। छल के चक्रव्यूह ने बेशक घेर लिया हो वीरता के अभिमन्यु को, वध अभिमन्यु का भी कौरवों को नही दे पाया पहचान।। छल से बेशक पांचाली को जीत लिया हो जुए में कौरवों ने, चीर हरण के समय आए माधव, बढ़ाया चीर, न घट पाया नारी सम्मान।। स्नेहप्रेमचंद