कभी कभी कुछ बड़ा गहरा सा , लिखने का मन करता है.... कुछ ऐसे शब्द जो बता सकें, कि मन कितना ऊब चुका है ज़िंदगी के मेलों से, लोगो के खेलों से, खुद के ही बदलते भावों से, अनदेखी अनसुलझी राहों से, कुछ ऐसे शब्द जो बता सकें, कितनी बेसब्री मची है सबसे अजनबी हो जाने की.... कितनी बेबसी छिपी है किसी खास अपने के जाने की कभी कभी मन करता है साहिल पर ना बैठी रहूं सागर की तलहटी के तले से ऐसे शब्द खोज लाऊं जो भाव लिख सकें कुछ ऐसे शब्द जो बोल जाये वह सब जो भीतर चल रहा है, कुछ ऐसे शब्द जो बचा ले, मुझे जीवन भर की उल्झनों से.. कुछ ऐसे शब्द जो शांत कर सकें भीतर के कोलाहल को कुछ ऐसे शब्द जो मन के बंजर रेगिस्तान को हरा हरा सा बना दें कुछ ऐसे शब्द जो घने अंधेरे में जुगुनू से जगमगा जाएं कुछ ऐसे शब्द जो हर मूर्छित चित पर संजीवनी बूटी सा काम करें कुछ ऐसे शब्द जो कहे कि. किसी की ज़रुरत नही है अब.. कुछ ऐसे शब्द जो बताये व्यक्तित्व मेरा, जताए हाले-दिल मेरा मेरी अच्छाई, मेरी बुराई और कह जाए वो सब जो अब तक रह गया अनकहा.... कभी कभी लगता है जीवन तो मृग तृ...