यूं ही तो नहीं होता लेखन दिलोदिमाग को मशक्कत करनी पड़ती है भारी।। रूह विचरती है अंतर्मन के गलियारों में, अनहद नाद बजने की आ जाती है बारी।। निर्मल मन की स्याही से सृजन का बिगुल लगता है बजने। एहसासों की दुल्हन सज कर जजबातो से, चल पड़ती है इज़हार के दूल्हे से मिलने।। स्नेह प्रेमचंद स्नेह प्रेमचंद