वह दौर गुजरा ही नहीं कभी जो तेरे साथ बीता है वही उसी गली में खड़ा है आज भी तेरी उंगलियां पकड़े यूं तो जीवन की हर परीक्षा में खरी उतर के आई हूँ हर कर्तव्य हर फर्ज मैने दिलो जान से निभाए हैं मगर जड़े वही जुड़ी है तेरी उंगलियां पकड़े एक रंग जो चढ़ा था तेरा वह आज भी निखर रहा है सांसे बिखर रही हैं मगर वजूद वही खड़ा है तेरी उंगलियां पकड़े एक मधुर अहसास सी तूं सच तन में जैसे हो श्वास सी तूं गगन में जैसे कोई ध्रुव तारा आती जाती लहरों का किनारा तन संग जैसे हो परछाई बसंत में आमों की अमराई हर उपमा है बहुत ही छोटी क्या कहूं या चुप रहूं मां जाई रुक गया है वक्त जैसे खत्म हो गया संवाद जैसे अवरुद्ध हो गया कंठ धुंधला सा गया है मंजर जैसे जब आंखें नम हों भाव हो गए प्रबल, जैसे अल्फाज कम हों