*मशक्कत* करनी पड़ती है किसी भी मारसिम को मजबूत बनाने में। *दौर ए कश्मकश*में गुजर न जाए जिंदगी, बागबान लगा रहता है *बहार ए चमन* लाने में।। एक तूं ही थी ऐसी जो सहजता से किसी भी नाते की पल भर में अपना बना लेती थी। *दौर ए कश्मकश* में भी मुस्कान अंधेरों पर अपने सजा लेती थी।। अंदाज ए गुफ्तगू भी सच में तेरा ओ मां जाई! था बहुत ही शानदार। धड़धड़ाती ट्रेन सा वजूद तेरा,सच में था बहुत ही जानदार।। स्नेह प्रेमचंद