सुविचार,,,,,,अँधेरे ने एक दिन कहा उजाले से,कहो उजाले कैसे हो तुम,और कहाँ कहाँ होता है वास तुम्हारा,क्यों चाहते हैं सब तुम्हें इतना,क्यों ज़िक्र भी नही चाहते हमारा,दम दम दमकते उजाले ने फिर किये प्रकट निज यूँ उदगार,जहां बहती है ज्ञान की गंगा,हो जाएंगे मेरे दीदार,जहां प्रेम है,वहां हूँ मैं, जहां सौहार्द है,वहां हूँ मैं, जहां सत्संग है वहां हूँ मैं, जहां मर्यादा का नही होता अतिक्रमण,वहां हूँ मैं, जहां न्याय में नही होता विलम्ब ,वहां मैं बड़े शौक से रहता हूँ,माँ की ममता में हूँ,बच्चों के बचपन में हूँ,करो निश्छल प्रेम बंधू तुम सब से,यही मैं तुम से कहता हूँ