जिन्हें हमारा खैरख्वाह होना चाहिए वही लोग हमें दुख देने की फेरहिस्त में सबसे ऊपर होते हैं,शायद विडंबना की यही सही मायनों में सटीक परिभाषा है।अहसास ए ज़िम्मेदारी उन्हें छू कर भी नहीं जाता।या तो उनकी तरबीयत में कोई कमी रह जाती है,या उनकी अहमकाना सोच इसका कारण होती है।अहसास ए जुर्म हो तो खौफ ए खुदा भी हो।नेकी का आफ़ताब उनके जेहन में कभी नही चमकता।दूसरों के आब ए चश्म से भी उन्हें कोई सरोकार नही होता।वे हमारी हर बात का समर्थन करें, ज़रूरी नहीं, पर हर हर बात की मुखालफत करें,ये तो कतई ज़रूरी नहीं।। स्नेहप्रेमचंद आब ए चश्म---आंसू मुखालफत---विरोध