एक ही,प्रेम वृक्ष के हैं हम फल,फूल,पत्ते और हरी भरी शाखाएं। विविधता है बेशक बाहरी स्वरूपों में हमारे,पर मन की एकता की मिलती हैं राहें।। जगह से दूर हो कर भी,मन से बहुत पास हैं हम,बेशक बताएं या न बताएं।। खुशियां दूनी,गम आधे हो जाते हैं संग एक दूजे के,गर प्रेम से फैला दें बाहें।। सराहना और आलोचना आओ एक दूजे की अपनाएं।। स्नेह प्रेमचंद