वे कहते हैं हमें सफर करना पसंद नहीं हम कहीं नहीं जाते उन्हें क्या पता मन के भीतर तो हम रोज ही सफर किया करते हैं, बस उसकी टिकट चेतना है, उसका टीटी आभास है, उसकी बर्थ एहसास है और उसकी स्टेशन अनुभव हैं, उसके सहयात्री मानवीय आवेग हैं। उसकी मंजिल इंसानियत है।हम तो जाने कब से सफर कर रहे हैं और उन्हें एहसास भी नहीं।। स्नेह प्रेमचंद