आज जन्मदिन पर वो, फिर से याद आई। मां जीवन की है सबसे, मधुर, सुरीली शहनाई।। मुझे इस जग में लाने वाली, हर संज्ञा,सर्वनाम,विशेषण का बोध कराने वाली, आई जब भी कोई समस्या, तत क्षण ही समाधान बन जाने वाली, जीवन का परिचय अनुभूतियों से कराने वाली, शिक्षा के भाल पर संस्कार का टीका लगाने वाली, सहजता,जिजीविषा और कर्म की त्रिवेणी बहाने वाली, सहरा में भी गुलिस्तां बन जाने वाली, कभी नहीं रुकती,कभी नहीं थकती, कथनी नहीं, करनी से सब कुछ सिखा ने वाली, मां बनी रही सदा, मैं, तेरी परछाई। तूं प्रेरणा है,तूं आदर्श है, हौले हौले सबको ये बात समझ में आई।। होती थी जब भी कोई चित चिंता, मां फट से तूं बन जाती थी करार। झट से भर देती थी स्नेह सीमेंट से आ जाती थी वजूद में जब कोई दरार।। दिल दिमाग दोनों की ही, मां भर देती थी तूं बिवाई। तेरे होते नहीं लगा,जैसे ही जीवन मे कोई तनहाई।। मेरे जन्मदिन पर मां, तुझे भी बधाई, मुझे भी बधाई।।।। आज जन्मदिन पर,वो फिर से याद आई।। बैग भी फट से हो जाता था तैयार, जब तेरे सांसों की थी रोशनाई। नमन नमन शत शत नमन तुझे, याद कर ये आंखें, सजल सी हो आ...